Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam


छाँडत क्‍यों नहिं रे नर
Karaoke :

छाँडत क्‍यों नहिं रे नर ! रीति अयानी ।
बार बार सिख देत सुगुरु यह, तू दे आनाकानी ॥

विषय न तजत न भजत बोध-व्रत, दुख-सुख जाति न जानी ।
शर्म चहै न लहै शठ ज्यों, घृत हेतु बिलोवत पानी ॥

तन धन सदन स्वजन जन तुझ सों, ये परजाय बिरानी ।
इन परिणमन विनश उपजन सों, तें दुख-सुखकर मानी ॥

इस अज्ञान तें चिरदुख पाये, तिनकी अकथ कहानी ।
ताको तज दृग-ज्ञान-चरन भज, निज परिणति शिवदानी ॥

यह दुर्लभ नरभव सुसंग लहि, तत्त्व लखावन वानी ।
'दौल' न कर अब पर में ममता, धर समता सुखदानी ॥



अर्थ : हे नर ! तू अपनी अज्ञानदशा को क्‍यों नहीं छोड़ता है ? सद्गुरु तुझे बार-बार शिक्षा दे रहे हैं, किन्तु तू आनाकानी कर रहा है।
तू न तो विषयों का त्याग करता है, न सम्यग्ज्ञान एवं संयम की उपासना करता है और न ही दुःख एवं सुख का सच्चा स्वरूप जानता है। यही कारण है कि तू सुख चाहता है, किन्तु सुख की प्राप्ति नहीं कर पाता है; उसी प्रकार, जिस प्रकार कि कोई व्यक्ति घी के लिए पानी बिलोता है।
हे मनुष्य ! शरीर, धन, मकान, परिवार, मित्रादि तो तुझसे भिन्न पर्यायें हैं। तूने व्यर्थ ही उनके नष्ट और उत्पन्न होने को अपने दुःख-सुख का कारण मान रखा है और इसी अज्ञान के कारण तूने चिरकाल तक इतने दुख प्राप्त किये है कि उनको कहा नही जा सकता। अतः अब तू अज्ञान को त्याग दे और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की उपासना कर। यही आत्मपरिणति तुझे मुक्ति प्रदान करनेवाली है।
कविवर दौलतराम कहते हैं कि हे नर ! अब तो तूने इस दुर्लभ मनुष्य भव, सत्संगति और तत्त्वदर्शी जिनवाणी को भी प्राप्त कर लिया है, अतः अब तो तू पर में ममता करना छोड़ और सुखदायक समता को अंगीकार कर ।