Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam


जे दिन तुम विवेक बिन
Karaoke :

जे दिन तुम, विवेक बिन खोये ॥टेक॥

मोह वारुणी पी अनादि तें, पर पद में चिर सोये ।
सुख करंड चित्‌ पिण्ड आप पद, गुण अनन्त नहीं जोये ॥
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥१॥

होय बहिर्मुख अनि राग रुष, कर्म बीज बहु बोये ।
तसु फल सुख दुःख सामिग्री लखि, चित्त में हरसे रोये ।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥२॥

धवल ध्यान शुचि सलिल पूर तें, आस्रव मल नहिं घोये ।
पर द्रव्यनि की चाह न रोकी, विविध परिग्रह ढोये ।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥३॥

अब निज में निज जान, नियत तहाँ, निज परिणाम समोये ।
यह शिव मारग, सम रस सागर, 'भागचन्द' हित तो ये ।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥४॥



अर्थ : हे जीव! तुमने बहुत समय विवेक के बिना गंवा दिया है।

हे चेतन! अनादि काल से मोह की मदिरा का पान करके तुम बाहर के पदों में अर्थात्‌ पर स्थान में सो रहे हो और तुमने सुख के सागर, चैतन्य पिंड ज्ञानानंद स्वरूप आत्मा जो कि स्वास्थान अर्थात्‌ अपना पद है उसके अनन्त गुर्णो को नहीं जाना। और बहुत समय विवेक के बिना गंवा दिया।

हे जीव! तुमने बहिर्मुख होकर रागादि विकारी भाव के कर्ता बनकर कर्म बंध के बीज ही बोये है और इन कर्मों के फल में मिलने वाली सुख-दुख की सामग्री को देखकर मन में सुखी-दुखी होते रहे हो ।हे जीव ! तुमने बहुत समय विवेक के बिना गंवा दिया।

हे चेतन! तुमने अपने निर्मल ध्यान रूपी जल से आस्रव रूपी मलिन भावों का परिहार नहीं किया, न ही पर्वव्य के संग्रह करने की इच्छा को वश में किया और अनेक प्रकार के परिग्रह को भी एकत्रित करते रहे और बहुत समय विवेक के बिना गंवा दिया।

अतः कविवर भागचन्दजी यहां कहते हैं कि - हे चेतन! अब अपने में अपने स्वरूप को जानों, वहीं पर रमण करो और अपनी परिणामों की संभाल करो - क्योंकि यह मोक्षमार्ग ही समता रस का समुद्र है और इसमें ही तुम्हारा हित है । अतः अब इन कियाओं को त्यागो और बिना विवेक के जो तुमने समय गंवाया उसकी संभाल करो ।