Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam


ऋषभदेव जनम्यौ
Karaoke :
राग : विलावल

ऋषभदेव जनम्यौ धन घरी ।
इन्द्र नचें गंधर्व बजावैं, किन्नर बहु रस भरी ॥टेक॥

पट आभूषन पुहुपमालसों, सहसबाहु सुरतरु ह्वै हरी ।
दश अवतार स्वांग विधि पूरन, नाच्यो शक्र भगति उर धरी ॥
ऋषभदेव जनम्यौ धन घरी ॥1॥

हाथ हजार सबनिपै अपछर, उछरत नभमैं चहुँदिशि फरी ।
करी करन अपछरी उछारत, ते सब नटैं गगन में खरी ॥
ऋषभदेव जनम्यौ धन घरी ॥२॥

प्रगट गुपत भूपर अंबरमें, नाचैं सबै अमर अमरी ।
'द्यानत' घर चैत्यालय कीनौं, नाभिरायजी हो लहरी ॥
ऋषभदेव जनम्यौ धन घरी ॥3॥



अर्थ : यह बड़ी, वह समय धन्य है, जब भगवान श्री ऋषभदेव का जन्म हुआ। इन्द्र ने नृत्य किया, गंधर्वों ने बाजे बजाए, किन्नरों ने संवेद रस से पूरित भाँतिभाँति की राग-रागिनियों से सारे वातावरण को रसमय कर दिया, सरस कर दिया।

वस्त्र-आभूषण (गहने), पुष्पों की माला लेकर कल्पवृक्ष की भांति सहस्रबाहु रूप धारणकर इन्द्र ने दशों दिशाओं में विक्रिया करते हुए भक्तिपूर्वक नृत्य किया।

इन्द्र ने विक्रिया से हजार हाथ बनाये, उन हजारों हाथों पर अप्सराओं ने नृत्य किया। स्वयं इन्द्र ने उछल-उछल कर सभी दिशाओं में नृत्य किया। अप्सराओं ने आकाश में अनेक प्रकार नृत्य किया।

इन्द्र ने अनेक प्रकार की नट क्रियाएँ की कभी अन्तान हुए, कभी पृथ्वी पर दीखे तो कभी आकाश में प्रगट हुए। इस प्रकार सभी देवी देवताओं ने भक्ति से नृत्य किया। द्यानतराय कहते हैं कि नाभिराय का घर उस प्रसन्नता की लहर में मानों एक चैत्यालय (मन्दिर) ही हो गया।