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तेरैं मोह नहीं
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तेरैं मोह नहीं ।
चक्री पूत सुगुनघर बेटो, कामदेव सुत ही ॥टेक॥

नव भव नेह जानकै कीनौ, दानी श्रेयाँस ही ।
मात तात निहाचै शिवगामी, पहले सुत सब ही ॥१॥

विद्याधरके नृप कर कीनौं, साले गनधर ही ।
बेटीको गननी पद दीनों, आरजिका सब ही ॥2॥

पोता आप बराबर कीनों, महावीर तुम ही ।
'द्यानत' आपन जान करत हो, हम हूँ सेवक ही ॥3॥



अर्थ : हे निर्मोही! तेरे कोई मोह नहीं है अर्थात् न राग है और न द्वेष है। तू वीतरागी है।

आपके भरत चक्रवर्ती जैसे पुत्र हैं जो गुणों के घर थे तथा बाहुबली कामदेव भी आपके पुत्र थे।

नौ भव पूर्व के नेह के कारण ही, उस कारण को जानकर, स्मरणकर राजा श्रेयांस ने आपको आहारदान दिया। आपके पुत्र अनन्तवीर्य आपसे पहले मोक्षगामी हुए, आपके माता-पिता भी निश्चय से मोक्षगामी हुए। नमि और विनमि को विद्याधरों का राजा बनाया और आपके साले कच्छ और सुकच्छ भी आपके गणधर बने। पुत्री को सब आर्यिकाओं में प्रमुख पद दिया।

अपने पौत्र मरीचि के जीव को तीर्थंकर महावीर के रूप में अपने बराबर का पद दिया / द्यानतराय कहते हैं कि आप हमें भी अपना जानकर कि हम भी आपके सेवक हैं, हमारा भी उद्धार करो। कच्छ और सुकन्छ ऋषभदेव के साले थे। वे इनके बहनरवें व चौहत्तरवें गणधर थे।