Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam

सम्यकचारित्र
विषय-रोग औषध महा, दव-कषाय जल-धार
तीर्थंकर जाको धरे सम्यक् चारित्र सार ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं

नीर सुगन्ध अपार, तृषा हरे मल छय करे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा

जल केशर घनसार, ताप हरे शीतल करे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय चदनं निर्वपामीति स्वाहा

अछत अनूप निहार, दारिद नाशे सुख भरे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा

पुहुप सुवास उदार, खेद हरे मन शुचि करे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा

नेवज विविध प्रकार, छुधा हरे थिरता करे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा

दीप-ज्योति तम-हार, घट-पट परकाशे महा
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा

धूप घ्रान-सुखकार रोग विघन जड़ता हरे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा

श्रीफल आदि विथार निहचे सुर-शिव फल करे
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा

जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु
सम्यक् चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥
ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

(जयमाला)
आप आप थिर नियत नय, तप संजम व्यौहार
स्व-पर-दया दोनों लिये, तेरहविध दुखहार ॥

(चौपाई मिश्रित गीता छन्द)
सम्यक् चारित रतन संभालो, पांच पाप तजिके व्रत पालो ।
पंचसमिति त्रय गुपति गहिजे, नरभव सफल करहु तन छीजे ॥
छीजे सदा तन को जतन यह, एक संजम पालिये ।
बहु रुल्यो नरक-निगोद माहीं, विषय-कषायनि टालिये ॥
शुभ करम जोग सुघाट आयो, पार हो दिन जात है ।
'द्यानत' धरम की नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है ॥

ॐ ह्रीं त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

(समुच्चय-जयमाला)
सम्यक् दरशन-ज्ञान-व्रत, इन बिन मुकति न होय
अन्ध पंगु अरु आलसी, जुदे जलैं दव-लोय ॥

(चौपाई 16 मात्रा)
जापै ध्यान सुथिर बन आवे, ताके करम-बंध कट जावें
तासों शिव-तिय प्रीति बढ़ावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावें ॥।१॥
ताको चहुं गति के दुख नाहीं, सो न परे भव-सागर माहीं
जनम-जरा-मृतु दोष मिटावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥२॥
सोई दश लक्षनको साधे, सो सोलह कारण आराधे
सो परमातम पद उपजावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥३॥
सो शक्र-चक्रिपद लेई, तीन लोक के सुख विलसेई
सो रागादिक भाव बहावै, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥४॥
सोई लोकालोक निहारे, परमानंद दशा विस्तारे
आप तिरै औरन तिरवावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥५॥

ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक् चारित्रेभ्यः महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

एक स्वरुप-प्रकाश निज, वचन कह्यो नहिं जाय
तीन भेद व्योहार सब, 'द्यानत' को सुखदाय ॥
(इत्याशीर्वादः -- पुष्पांजलिं क्षिपेत्)