यदि प्राणी की दृष्टि तिमिर-नाशक हो तो दीपक से कोई प्रयोजन नहीं है, उसी प्रकार जहाँ आत्मा स्वयं सुख-रूप परिणमन करता है वहाँ विषय क्या कर सकते हैं ?
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