देखो जी आदीश्वर स्वामी कैसा ध्यान लगाया हैकर ऊपरि कर सुभग विराजै, आसन थिर ठहराया है ॥टेक॥जगत-विभूति भूतिसम तजकर, निजानन्द पद ध्याया हैसुरभित श्वासा, आशा वासा, नासादृष्टि सुहाया है ॥१॥कंचन वरन चलै मन रंच न, सुरगिर ज्यों थिर थाया हैजास पास अहि मोर मृगी हरि, जातिविरोध नसाया है ॥२॥शुध उपयोग हुताशन में जिन, वसुविधि समिध जलाया हैश्यामलि अलकावलि शिर सोहै, मानों धुआँ उड़ाया है ॥३॥जीवन-मरन अलाभ-लाभ जिन, तृन-मनिको सम भाया हैसुर नर नाग नमहिं पद जाकै, 'दौल' तास जस गाया है ॥४॥