चाह मुझे है दर्शन की, प्रभु के चरण स्पर्शन की ॥टेक॥वीतराग-छवि प्यारी है, जगजन को मनहारी है ।मूरत मेरे भगवन की, वीर के चरण स्पर्शन की ॥१॥कुछ भी नहीं श्रृंगार किये, हाथ नहीं हथियार लिये ।फौज भगाई कर्मन की, प्रभु के चरण स्पर्शन की ॥२॥समता पाठ पढ़ाती है, ध्यान की याद दिलाती है ।नासादृष्टि लखो इनकी, प्रभु के चरण स्पर्शन की ॥३॥हाथ पे हाथ धरे ऐसे, करना कुछ न रहा जैसे ।देख दशा पद्मासन की, वीर के चरण स्पर्शन की ॥४॥जो शिव-आनन्द चाहो तुम, इन-सा ध्यान लगाओ तुम ।विपत हरे भव-भटकन की, प्रभु के चरण स्पर्शन की ॥५॥