ना जिन द्वार आये, ना जिन नाथ ध्याये,सदा जिन्दगी के अंधेरे में हमको,कर्मों ने दर-दर नचाये, डुलाये ॥टेक॥गैर की चाह सदा मन के माँही पली,रात दिन कल कहीं, पल को भी ना मिली,सदा लोक माँही तो धोखा मिला है,हुए ना कभी कोई अपने पराये ॥ना जिन द्वार आये, ना जिन नाथ ध्याये ॥१॥मन तड़पता रहा, नैन बहते रहे,कैसी-कैसी सदा पीर सहते रहे,मगर सारी पीड़ा कहीं खो गई है,द्वारे पे आके जो जिन दर्श पाये ॥ना जिन द्वार आये, ना जिन नाथ ध्याये ॥२॥