श्री अरहंत छबि लखि हिरदै, आनन्द अनुपम छाया है ॥टेक॥वीतराग मुद्रा हितकारी, आसन पद्म लगाया है ।दृष्टि नासिका अग्रधार मनु, ध्यान महान बढ़ाया है ॥१॥रूप सुधाकर अंजलि भरभर, पीवत अति सुख पाया है ।तारन-तरन जगत हितकारी, विरद सचीपति गाया है ॥२॥तुम मुख-चन्द्र नयन के मारग, हिरदै माहिं समाया है ।भ्रमतम दु:ख आताप नस्यो सब,सुखसागर बढ़ि आया है ॥३॥प्रकटी उर सन्तोष चन्द्रिका, निज स्वरूप दर्शाया है ।धन्य-धन्य तुम छवि `जिनेश्वर', देखत ही सुख पाया है ॥४॥