अरिहंत देव स्वामी, शरण तेरी आएदुःख से हैं व्याकुल, कर्म के सताए हम ॥टेक॥निज कर्म काट करके, आप सिद्ध हो गए होतारण-तरण तुम्ही हो, जिनवाणी बताए ॥१॥शक्ति है तुझमें ऐसी, कर्म काटने कीछोड़कर तुम्हे हम, किसकी शरण जाएं ॥२॥मझधार में पड़ी है, प्रभुजी नाव मेरीभव-पार तुम लगा दो आस लेके आए ॥३॥तारा है तुमने उनको, जिसने भी पुकाराहम भी पुकारते हैं, तुझसे लौ लगाए ॥४॥