गाएँ जी गाएँ आदिनाथ की, आरति मंगल गाएँविशद भाव से आरति करके, मन में अति हर्षाएँजिनवर के चरणों में नमन, प्रभुवर के चरणों में नमनस्वर्ग लोक से चय करके प्रभु, माँ के उर में आएदेवों ने खुश होकर अनुपम, दिव्य रतन बरसाएचिर निद्रा में मरुदेवी को, सोलह स्वप्न दिखाए ॥विशद॥भोग-भूमि के अन्त समय में, तुमने जन्म लिया हैनाभिराय अरु मरुदेवी का, जीवन धन्य किया है नगर अयोध्या जन्म लिया है, ऋषभ चिन्ह को पाए ॥विशद॥सौधर्म इंद्र ने ऋषभ चिन्ह लख, वृषभ नाम बतलायाषट्कर्मों का भावी जीवों को, प्रभु सन्देश सुनायानीलांजना की मृत्यु देखकर, प्रभु वैराग्य जगाए ॥विशद॥चार घातिया कर्म नाशकर केवल-ज्ञान जगायाभव-सागर का अन्त किया प्रभु, शिव-रमणी को पायामानतुंग जी भक्ति करके, भक्तामर जी गाए ॥विशद॥