करता हूँ तुम्हारा सुमरण उद्धार करो जी,मंझधार में हूँ अटका, बेडा पार करो जी,हे रिषभ जिनंदा, हे रिषभ जिनंदा ॥आया हूँ बड़ी आशा से तुम्हारे दरबार में,ना पाया कभी भी चेना, इस दुखमय संसार में,देते हैं कर्म दुःख इनका, संहार करो जी॥करता हूँ चरण प्रक्षालन, आरतियाँ उतारूं,शत शत मैं करूं पड़ वंदन, तन मन हैं सभी वारूँ,पद में हो ठिकाना मेरा, तरण तार करो जी॥जल, चंदन, अक्षत, उज्जवल,ये सुमन चरु लीन,ये दीप धुप फल सभी प्रभु अरपन है कीने,मल पाप छुडा कर तुमसा, अविकार करो जी॥नाभि राजा के नंदन, मरू देवी दुलारे,आए जो शरण में उनको प्रभु आपने तारे,शिव तक पहुंचा कर मुझको, उपकार करो जी॥