कुंथुन के प्रतिपाल कुंथ जग, तार सारगुनधारक हैं ।वर्जितग्रन्थ कुपंथवितर्जित, अर्जितपंथ अमारक हैं ॥टेक॥जाकी समवसरन बहिरंग, रमा गनधार अपार कहैं ।सम्यग्दर्शन-बोध-चरण-अध्यात्म-रमा-भरभारक हैं ॥१॥दशधा-धर्म पोतकर भव्यन, को भवसागर तारक हैं ।वरसमाधि-वन-घन विभावरज, पुंजनिकुंजनिवारक हैं ॥२॥जासु ज्ञाननभ में अलोकजुत-लोक यथा इक तारक हैं ।जासु ध्यान हस्तावलम्ब दुख-कूपविरूप-उधारक हैं ॥३॥तज छखंडकमला प्रभु अमला, तपकमला आगारक हैं।द्वादशसभा-सरोजसूर भ्रम,-तरुअंकूर उपारक हैं ॥४॥गुणअनंत कहि लहत अंत को? सुरगुरु से बुध हारक हैं ।नमें 'दौल' हे कृपाकंद, भवद्वंद टार बहुबार कहैं ॥५॥