गा रे भैया, गा रे भैया, गा रे भैया गा,प्रभु गुण गा तू समय ना गवां॥किसको समझे अपना प्यारे, स्वारथ के हैं रिश्ते सारेफ़िर क्यों प्रीत लगाये, ओ भैया जी ॥गा रे भैया...॥दुनियां के सब लोग निराले, बाहर उजले अंदर कालेफ़िर क्यों मोह बढाये, ओ बाबू जी ॥गा रे भैया...॥मिट्टी की यह नश्वर काया, जिसमें आतम राम समायाउसका ध्यान लगा ले, ओ दादा जी ॥गा रे भैया...॥स्वारथ की दुनियां को तजकर, निश दिन प्रभु का नाम जपाकरसमयग्दर्शन पाले, ओ काका जी ॥गा रे भैया...॥शुद्धातम को लक्ष्य बनाकर, निर्मल भेदज्ञान प्रगटाकरमुक्ति वधू को पाले, ओ लाला जी ॥गा रे भैया...॥