जपि माला जिनवर नाम की ।भजन सुधारससों नहिं धोई, सो रसना किस काम की ॥टेक॥सुमरन सार और सब मिथ्या, पटतर धूंवा नाम की ।विषम कमान समान विषय सुख, काय कोथली चाम की ॥१॥जैसे चित्र-नाग के मांथै, थिर मूरति चित्राम की ।चित आरूढ़ करो प्रभु ऐसे, खोय गुंडी परिनाम की ॥२॥कर्म बैरि अहनिशि छल जोवैं, सुधि न परत पल जाम की ।'भूधर' कैसैं बनत विसारैं, रटना पूरन राम की ॥३॥