तिहारे ध्यान की मूरत, अजब छवि को दिखाती है ।विषय की वासना तज कर, निजातम लौ लगाती है ॥टेक॥तेरे दर्शन से हे स्वामी! लखा है रूप मैं तेरा ।तजूँ कब राग तन-धन का, ये सब मेरे विजाती हैं ॥१॥जगत के देव सब देखे, कोई रागी कोई द्वेषी ।किसी के हाथ आयुध है, किसी को नार भाती है ॥२॥जगत के देव हठग्राही, कुनय के पक्षपाती हैं ।तू ही सुनय का है वेत्ता, वचन तेरे अघाती हैं ॥३॥मुझे कुछ चाह नहीं जग की, यही है चाह स्वामी जी ।जपूँ तुम नाम की माला, जो मेरे काम आती है ॥४॥तुम्हारी छवि निरख स्वामी, निजातम लौ लगी मेरे ।यही लौ पार कर देगी, जो भक्तों को सुहाती है ॥५॥