तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ।मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो ॥टेक॥जिनवाणी रसपान करूँ मैं, जिनवर को ध्याऊँ ।आर्यजनों की संगति पाऊँ, व्रत-संयम चाहूँ ॥गुणीजनों के सद्गुण गाऊँ, जिनवर यह वर दो ।मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥१॥परनिन्दा न मुँह से निकले, मधुर वचन बोलूँ ।हृदय तराजू पर हितकारी, सम्भाषण तौलूँ ॥आत्म-तत्त्व की रहे भावना, भाव विमल भर दो ।मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥2॥ जिनशासन में प्रीति बढ़ाऊँ, मिथ्यापथ छोडूँ ।निष्कलंक चैतन्य भावना, जिनमत से जोडूँ ॥जन्म-जन्म में जैनधर्म, यह मिले कृपा कर दो ।मेरा अन्तिम मरण समाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥3॥मरण समय गुरु, पाद-मूल हो सन्त समूह रहे।जिनालयों में जिनवाणी की, गंगा नित्य बहे ॥भव-भव में संन्यास मरण हो, नाथ हाथ धर दो ।मेरा अन्तिम मरण समाधि, तेरे दर पर होतेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥4॥बाल्यकाल से अब तक मैंने, जो सेवा की हो ।देना चाहो प्रभो! आप तो, बस इतना फल दो ॥श्वास-श्वास, अन्तिम श्वासों में, णमोकार भर दो ।मेरा अन्तिम मरण समाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥5॥विषय कषायों को मैं त्यागूँ, तजूँ परिग्रह को ।मोक्षमार्ग पर बढ़ता जाऊँ, नाथ अनुग्रह हो ॥तन पिंजर से मुझे निकालो, सिद्धालय घर दो ।मेरा अन्तिम मरण समाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥6॥तेरे चरण कमल द्वय, जिनवर! रहे हृदय मेरे ।मेरा हृदय रहे सदा ही, चरणों में तेरे ॥पण्डित-पण्डित मरण हो मेरा, ऐसा अवसर दो ।मेरा अन्तिम मरण समाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥7॥दु:ख नाश हो, कर्म नाश हो, बोधि-लाभ वर दो ।जिन गुण से प्रभु आप भरे हो, वह मुझमें भर दो ॥यही प्रार्थना, यही भावना, पूर्ण आप कर दो ।मेरा अन्तिम मरण समाधि, तेरे दर पर हो ।तेरी छत्रछाया भगवन्! मेरे सिर पर हो ॥8॥