तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ ।खुले नैन मारग, आ दिल मैं बिठाऊँ ॥लेखा ना देखा, धर्म पाप जोड़ा,बना भोग लिप्सा कि चाहों में दौड़ा,सहे दुख जो जो कहा लो सुनाऊँ ।तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ ॥1॥तेरा ज्ञान गौरव जो गणधर ने गाया,वही गीत पावन मुझे आज भाया,उसी के सुरों में सुनो मैं सुनाऊँ ।तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ ॥2॥जगी आत्म ज्योति सम्यक्त्व तत्त्व की,घटी है घटा शाम मिथ्या विकल की,निजानन्द 'सौभाग्य' सेहरा सजाऊँ ।तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ ॥3॥