दयालु प्रभु से दया मांगते हैंअपने दुःखों की दवा मांगते हैं ॥टेक॥ नही हमसा कोई, अधम् चोर पापी , सत् कर्म हमने न, किये हैं कदापि । किये नाथ हमने यह अपराध भारी,उनकी हृदय से हम क्षमां मांगते हैं ॥दयालु....१॥दुनियां के भोगों की ना कुछ चाहना,स्वर्ग के सुखों की भी ना कुछ कामना । मिले सत् संयम करें आत्म चिन्तन ,वरदान भगवन् ये सदा मांगते हैं ॥दयालु....२॥प्रभु तेरी भक्ति में, मन ये मगन हो । निजातम के चिन्तन कि हरदम लगन हो,यहीं एक आशा है बन जाऊँ तुम सा,सेवक नहीं और कुछ मांगते हैं ॥दयालु....३॥