पंच परम परमेष्ठी देखेहृदय हर्षित होता है, आनन्द उल्लसित होता है ।हो s s s सम्यग्दर्शन होता है ॥टेक॥दर्श-ज्ञान-सुख-वीर्य स्वरूपी गुण अनन्त के धारी हैं ।जग को मुक्तिमार्ग बताते, निज चैतन्य विहारी हैं ॥मोक्षमार्ग के नेता देखे, विश्व तत्त्व के ज्ञाता देखे ।हृदय हर्षित होता है-------------------- ॥१॥द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित, जो सिद्धालय के वासी हैं ।आतम को प्रतिबिम्बित करते, अजर अमर अविनाशी हैं ॥शाश्वत सुख के भोगी देखे, योगरहित निजयोगी देखे ।हृदय हर्षित होता है---------------------- ॥२॥साधु संघ के अनुशासक जो, धर्मतीर्थ के नायक हैं ।निज-पर के हितकारी गुरुवर, देव-धर्म परिचायक हैं ।।गुण छत्तीस सुपालक देखे, मुक्तिमार्ग संचालक देखे ।हृदय हर्षित होता है---------------------- ॥३॥जिनवाणी को हृदयंगम कर, शुद्धातम रस पीते हैं ।द्वादशांग के धारक मुनिवर, ज्ञानानन्द में जीते हैं ।।द्रव्य-भाव श्रुत धारी देखे, बीस-पाँच गुणधारी देखे ।हृदय हर्षित होता है---------------------- ॥४॥निजस्वभाव साधनरत साधु, परम दिगम्बर वनवासी ।सहज शुद्ध चैतन्यराजमय, निजपरिणति के अभिलाषी ।।चलते-फिरते सिद्धप्रभु देखे, बीस-आठ गुणमय विभु देखे ।हृदय हर्षित होता है---------------------- ।।५ ।।