मंगल अरिहंत मंगल सिद्धा,मंगल साधु पद पा जाना।मंगलमय जिनवाणी माता,कैवल्य कला का पा जाना ।।ये चारों मंगल उत्तम हैं,मैं शरण इन्हीं की पा जाऊँ।इनका ही मनन सुमिरन कर के,अपने शुद्धात्म को ध्याऊँ।।अन्वेषण हो आराधन हो,फिर नित्य निरंजन पा जाना।।(1)ये पंचकल्याण सुयोग मिला,निर्वाण भूमि पर आ जाना।मंगल सुयोग महान मिले,जिनवाणी का अमृत पाना।।मेरा नरभव अब सफल बने,ऐसा कुछ गुरुवर बतलाना।।(2)