मन भाये चित हुलसाये मेरे छाया हर्ष अपार रे -लख वीर तुम्हारी मूरतियां ॥देख लिया मैंने जग सारा तुमसा नजर ना आये,वीतराग मुद्रा तुम धारे बैठे ध्यान लगाय-प्रभू तुम बैठे ध्यान लगाय,सुरपति आवे, मंगल गावे, नाचे दे दे ताल रे ॥१॥अष्ट कर्म को जीत प्रभू तुम पाया केवलज्ञान,दे उपदेश बहुत जन तारे कहां तक करूं बखान-प्रभू मैं कहां तक करूं बखान,भय जाये, मेरे रोग ना आये मेरे, सुधरे काम हजार रे ॥२॥राग-द्वेष में लिप्त हुआ मैं सत को नहीं पिछाना,पर-वस्तु को अपना समझा, झूठे मत को माना-प्रभू जी उलटे मत को माना,अब तुम पाये भरम नशाये, 'पंकज' होगा पार रे ॥३॥