हरो पीर मेरी त्रिशला के लाला, मैं सेवक तुम्हारा बड़ा भोला भालामुझे ठग लिया अष्ट कर्मों ने स्वामी,भटकता फिरा मैं बना मूढगामी,विषय भोग ने मुझपे (हो...-२), ऐसा जादू डाला, हुआ मतवालामैं पर को ही अपना समझता रहा हूँ,वृथा विकथा में उलझता रहा हूँ,धरम क्या है मैंने कभी (हो.. -२), देखा न भाला, यूँ ही वक्त टालान देखा गया तुमसे जग के दुखों को ,तजा क्षण में अपने सारे सुखों को,अहिंसा से मेटी तुमने (हो..-२), हिंसा की ज्वाला, हुई दीपमालासुना है प्रभो आप सुनते हो सबकी,आती है पंकज को वो याद तबकी,सती चंदना का तुमने (हो..-२), संकट था टाला, यह सच है दयाला