मूरत है बनी प्रभु की प्यारी, दुख नाश खुशी लाने के लिये,सुरगण भी तरसते रहते हैं, जिन रूप सुधा पाने के लिये ॥टेक॥गुणगान करेगा क्या कोई , क्या कोई बखान करे महिमा,छन्दों गाथा में समायेगी, किस तरह से श्री जिन की गरिमा,पावन ये प्रभु का रूप बहुत, कोई ज्ञान स्व-पर पाने के लिये ॥मूरत है बनी प्रभु की प्यारी, दुख नाश खुशी लाने के लिये ॥१॥अनुपम ही तरंग है भक्ति में, पूजा में हृदय की निर्मलता,झरता जो तेज है मुखड़े से, हरने को है पातक कालुषता,वाणी में प्रभु की सार बहुत कोई भव से पार जाने के लिये ॥मूरत है बनी प्रभु की प्यारी, दुख नाश खुशी लाने के लिये ॥२॥