है कितनी मनहार, बहती शांति की धार ये मूरतिया अविकार, लगती कितनी सुन्दर है, ये कितनी सुन्दर है । सुखकर रूप लगा, और दुःख हर रूप लगा, मंगल कर रूप लगा,तुमसा और न ईश्वर है, तुम्ही सा कोई न ईश्वर है ।निर्ग्रन्थ है तेरा बाना, छवि वीतराग क्या कहना, नासा दृष्टि प्यारी, ये अनिमिष अद्भुत नयना, हो हर्षित, मन लखे जब, हो पूजे तो मिटे विकार ॥कितनी...१॥सारे जग में भटकाया, तेरा रूप ही सच्चा पाया, इसलिये छोड़ के सबको, तेरे द्वार खिंचा चला आया,ये दर्शन तूने देकर, पापों से दिया छुड़ा ॥सुखकर...२॥तेरा रंग सुवरण जैसा, तेरे बोले सच्चे मोती, तेरी शान्त सलोनी मुद्रा, तू ज्ञान की है ज्योति,तेरी मूरत, मोही आतम, 'प्रभु' देखूँ बार-बार ॥है कितनी...३॥