नित्य बोधिनी माँ जिनवाणी, चरणों में सादर वंदन । भटक-भटक कर हार गये हम, मेटो भव-भव का क्रंदन ॥टेक॥
मैं अनादि से मोह नींद की, मदहोशी में मस्त रहा । परद्रव्यों की आसक्ति में, हरपल में संलग्न रहा । खोज रहा पर में सुख को मैं, व्यर्थ गया सारा मंथन ॥नित्य...१॥
अनेकांतमय जिनवाणी ने, मुक्ति का पथ दिखलाया । सप्त तत्व और छह द्रव्यों का, ज्ञान जगत को करवाया । हम भी प्रभु वाणी पर चलकर, मेटेंगे भव के बंधन ॥नित्य...२॥
शुद्धातम स्वरुप से सज्जित, द्वादशांगमय जिनवाणी । पावन वाणी को अपनाकर, लाखो संत बने ज्ञानी । जयवंतो हे माँ जिनवाणी, बार-बार हम करे नमन ॥नित्य...३॥