माँ जिनवाणी ज्ञायक बताय दियो रे,आनंद भयो भारी, आनंद भयो रे ।सविनय शीश नवाय रहो रे ।आनंद भयो भारी, आनंद भयो रे ॥टेक॥काल अनादि से भ्रमता फिरता, जन्म-जन्म में बहु दुःख सहता ।अब सब ही दुःख पलाय गयो रे, आनंद भयो भारी, आनंद भयो रे ।जो प्रमत्त अप्रमत नहीं है, ज्ञायक शुद्ध अभेद सही है ।स्वयं सिद्ध दरशाय दियो रे, आनंद भयो भारी, आनंद भयो रे ।पर अवलंबन छोड़ जो देखा, निज का वैभव प्रत्यक्ष देखा ।सम्यक रत्नत्रय प्रकटाय रह्यो रे, आनंद भयो भारी, आनंद भयो रे ।अब न कामना कोई बाकी, निज महिमा सर्वोत्तम है आंकी ।निज महिमा में डुलोय रह्यो रे, आनंद भयो भारी, आनंद भयो रे ।