करता हूं मैं अभिनन्दन, स्वीकार करो माँ,शरणागत अपने बालक का, उद्धार करो माँ ।हे माँ जिनवाणी, हे माँ जिनवाणी ॥टेक॥मिथ्यात्व वश रुल रहा हूं माँ, अशरण संसार में,पुण्योदय से आ गया हूं माँ, तेरे दरबार में ।सम्यक हो मेरी बुद्धि, उपकार करो माँ,शरणागत अपने बालक का, उद्धार करो माँ ॥१॥इस पंचम काल में तीर्थंकर, दर्शन हैं नहीं,सच्चे ज्ञानी गुरु दुर्लभ, मिलते कभी कभी ।अतएव मुझ निराधार की, आधार तुम्हीं माँ,शरणागत अपने बालक का, उद्धार करो माँ ॥२॥जीवादि सात तत्वों का माँ, मर्म बताया,स्याद्वाद अनेकांत ले, निजरूप जताया ।निजरूप को लखकर माँ निज में लीन रहूं माँ,शरणागत अपने बालक का, उद्धार करो माँ ॥३॥भोगों से उदासीन निज पर की धारूं करुणा,सम्यक श्रद्धा पूर्वक कषाय परिहरना ।रत्नत्रय पथ पर चलकर शिवनारी वरूं माँ,शरणागत अपने बालक का, उद्धार करो माँ ॥हे माँ जिनवाणी, हे माँ जिनवाणी ॥४॥