जब एक रतन अनमोल है तो, रत्नाकर फ़िर कैसा होगा, जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो, वो कितना सुन्दर होगा,इसके दीवाने हैं ज्ञानी, हर धुन में वही सवार रहे, बस एक लक्ष्य अरु एक प्रक्ष्य, हर श्वांस उसी के लिये रहे,जिसको पाकर सब कुछ पाया, उससे भी बढकर क्या होगा ॥टेक॥जो वाणी के भी पार कहा, मन भी थक कर के रह जाये, इन्द्रिय गोचर तो दूर अतीन्द्रिय के भी कल्प में ना आयेअनुभव गोचर कुछ नाम नहीं निर्नाम भी क्या अद्भुत होगा ॥टेक॥सप्त भंग पढे नौ पूर्व रटे, पर उस का स्वाद नहीं आये, उनसे ग्रसीते अनपढ भी ले स्वाद सफ़ल होकर जाये, जड पुद्गल तो अनजान स्वयं, वो ज्ञान तुझे कैसे देगा ॥टेक॥जिसकी महिमा प्रभु की वाणी, जाती मन मोह को लहराये, जो साम्य गुणॊं के रत्नाकर सब हे परमेश्वर फ़रमायेतू माने या ना भी माने, परमात्मपना सम ना होगा ॥टेक॥