जिनवाणी माँ आपका शुभ, शरण मिल गया ।जिनवाणी को सुनकर मेरा, हृदय खिल गया ॥टेक॥मेटो जामन मरण हमारा, यही है अरमान ।लाख चौरासी भटक रहे हम हुआ न आतम ज्ञान ॥मुक्ति का पद दो यही, अरमान रह गया ।जिनवाणी माँ आपका शुभ, शरण मिल गया ॥१॥मोह तिमिर का नाश करके, दुख का हो अवसान ।शाश्वत सुख को प्राप्त करके करे इसी का पान ।मुक्ति का पावन संदेशा, आज मिल गया ।जिनवाणी माँ आपका शुभ, शरण मिल गया ॥२॥अब तो केवल आप शरणा, करें सुधा रस पान ।माँ जिनवाणी को है वंदन, जग मेन आप महान ॥तेरे चरणों का मैं सच्चा, दास बन गया ।जिनवाणी माँ आपका शुभ, शरण मिल गया ।जिनवाणी को सुनकर मेरा, हृदय खिल गया ॥३॥