जिनवानी जान सुजान रे ॥टेक॥लाग रही चिरतैं विभावता, ताको कर अवसान रे ॥जिनवानी॥द्रव्य क्षेत्र अरु काल भाव की, कथनी को पहिचान रे ।जाहि पिछाने स्वपरभेद सब, जाने परत निदान रे ॥जिनवानी जान सुजान रे ॥१॥पूरब जिन जानी तिनहीने, भानी संसृतिवान रे ।अब जानै अरु जानेंगे जे, ते पावैं शिवथान रे ॥जिनवानी जान सुजान रे ॥२॥कह 'तुषमाष' सुनी शिवभूती, पायो केवलज्ञान रे ।यौ लखि 'दौलत' सतत करो भवि, जिनवचनामृत पान रे ॥जिनवानी जान सुजान रे ॥३॥