मंगल बेला आई आज, श्री जिनवाणी पाई आज ॥टेक॥वीर गिरी से सरिता फूटी, धार रही जिसे गौतम धरती कुंदकुन्द ने करके स्नान, सार निकाला समय महान मंगल बेला आई आज, श्री जिनवाणी पाई आज ॥१॥दिव्य देशना निर्मल जल से, भेद ज्ञान की धारा छलकेपरिणति का प्रक्षालन आज, मैं हूं ज्ञायक चेतन राज मंगल बेला आई आज, श्री जिनवाणी पाई आज ॥२॥एक ज्ञान मेरा स्वभाव है, राग द्वेष सब अन्य जात हैक्षण क्षण बदले यह संसार, मैं हूं त्रिकाली निज आधार मंगल बेला आई आज, श्री जिनवाणी पाई आज ॥३॥जिनप्रवचन का यही सार है, समयसार ही नियमसार है शुद्धातम ही है भगवान, परिणति झांके ले पहचानमंगल बेला आई आज, श्री जिनवाणी पाई आज ॥४॥