सीमंधर मुख से फ़ुलवा खिरे, जाकी कुन्दकुन्द गूंथें माल रेजिनजी की वाणी भली रे ॥वाणी प्रभू मन लागे भली, जिसमें सार समय शिरताज रे ॥१॥गूंथा पाहुड अरु गूंथा पंचास्ति, गूंथा जो प्रवचनसार रे ॥२॥गूंथा नियमसार, गूंथा रयणसार, गूंथा समय का सार रे ॥३॥स्याद्वादरूपी सुगन्धी भरा जो, जिनजी का ओंकारनाद रे ॥४॥वन्दू जिनेश्वर, वन्दू मैं कुन्दकुन्द, वन्दू यह ओंकार नाद रे ॥५॥हृदय रहो, मेरे भावे रहो, मेरे ध्यान रहो जिनबैन रे ॥६॥जिनेश्वर देव की वाणी की गूंज, गूंजती रहो दिन रात रे ॥७॥