सुन सुन रे चेतन प्राणी - नित ध्यालो जिनवरवाणीदुर्लभ नर भव को पाकर - बन जावो सम्यक्ज्ञानी ॥मानव कुल तुमने पाया, जिनवाणी का शरणा पाया ।समझाते गुरूवर ज्ञानी, प्रभु वाणी जग कल्याणी ।अब तज दो विषय कषाएँ - छोड़ो सारी नादानी ।दुर्लभ नर भव को पाकर बन जावो सम्यक्ज्ञानी ॥१॥यह जीवन है अनमोला, इसको न व्यर्थ खो देना ।जीवन में धर्म कमाकर, पर्याय सफल कर लेना ।यह नित्य बोधनी वाणी, श्री कुंदकुंद की वाणी ।दुर्लभ नर भव को पाकर बन जावो सम्यक् ज्ञानी ॥२॥चलते चलते जीवन की कब जाने शाम हो जाए ।ना जाने जलता दीपक, तूफां में कब बुझ जाए ।यह अवसर चूक न जाना, प्रभु वाणी भूल न जाना ।भोगों में उलझ उलझ कर, जिनधर्म को न बिसराना ।सुख का पथ दिखलाती है, माँ सरस्वती जिनवाणी ।दुर्लभ नर भव को पाकर बन जाओ सम्यक्ज्ञानी ॥३॥