हमें निज धर्म पर चलना, सिखाती रोज जिनवाणी ।सदा शुभ आचरण करना, सिखाती रोज जिनवाणी ॥टेक॥चौरासी लाख योनि में, भटक नर जन्म पाया है ।निधि निज भूल नहिं पावें, सिखाती रोज जिनवाणी ॥१॥ग्रहण करना नहीं करना , कि क्या निज क्या पराया है ।भेद-विज्ञान इसका भी, सिखाती रोज जिनवाणी ॥२॥धनिक निर्धन स्वजन परिजन, कि ज्ञानी या अज्ञानी है ।भेद तज मार्ग सुखकारी, सिखाती रोज जिनवाणी ॥३॥जिन्हें संसार सागर से, उतर भव पार जाना है।उन्हें सुख के किनारे पर, लगाती रोज जिनवाणी ॥४॥सत्य सुख सार पा इसमें, पतित तम पार जाना है ।शरण 'दोषी' यही तेरी, है तारनहार जिनवाणी ॥५॥हमें संसार सागर में, रुलाते कर्म हैं आठों ।करें किस भाँति इनका क्षय,सिखाती रोज जिनवाणी ॥६॥करें जो भव्य मन निर्मल, पठन कर शीघ्र तिर जावे ।मार्ग शिवपुर में जाने का, दिखाती रोज जिनवाणी ॥७॥