मैं परम दिगम्बर साधु के गुण गाऊँ-गाऊँ रे ।मैं शुध उपयोगी सन्तन को नित ध्याऊँ-ध्याऊँ रे ।मैं पंच महाव्रत धारी को शिर नाऊँ-नाऊँ रे ॥जो बीस आठ गुण धरते, मन-वचन-काय वश करते ।बाईस परीषह जीत जितेन्द्रिय ध्याऊँ-ध्याऊँ रे ॥१॥जिन कनक-कामिनी त्यागी, मन ममता त्याग विरागी ।मैं स्वपर भेद-विज्ञानी से सुन पाऊँ-पाऊँ रे ॥२॥कुंदकुंद प्रभुजी विचरते, तीर्थंकर-सम आचरते ।ऐसे मुनि मार्ग प्रणेता को, मैं ध्याऊँ-ध्याऊँ रे ॥३॥जो हित-मित वचन उचरते, धर्मामृत वर्षा करते ।'सौभाग्य' तरण-तारण पर बलि-बलि जाऊँ-जाऊँ रे ॥४॥