उड़ चला पंछी रे हरी-भरी डाल सेरोको रे रोको कोई मुनि को विहार से ॥खिल भी न पाई रामा, सुबह से कलियाँ सूनी पड़ी है आज नगरी की गलियाँधो रहे हैं नैना पथ को निहार के ॥१॥दर्शन को आकुल अँखियाँ असुवां लुटावेंनाम लेके विद्यासागर होंठ हम बुलावेंबैठूँ तो कैसे बैठूं मनवा को मार के ॥२॥महावीर के लघु-नंदन, कृपा ऐसी कीजिएभूल हुई जो भी हमसे, क्षमा दान दीजिएचरणों को धोउंगा मैं आँसुओं की धार से ॥३॥