ऐसे मुनिवर देखे वन में, जाके राग द्वेष नहिं मन में ॥टेक॥ग्रीष्म ऋतुशिखर के ऊपर, वे तो मगन रहे ध्यानन में ॥१॥चातुर्मास तरु तल ठाड़े, वे तो बून्द सहे छिन-छिन में ॥२॥शीत मास दरिया के किनारे, वे तो धीरज धारे तन में ॥३॥ऐसे गुरू को नितप्रति ध्याऊँ, हम तो देत ढोक चरणन में ॥४॥