होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥टेक॥जिस माता ने बड़े चाव से, कीना था प्रतिपाल ।आज उसी से मोह छोड़कर, बन गए वे मुनि हाल ॥होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥१॥जिस तन में सरसों का दाना, चुभता था तत्काल ।आज चले नंगे पैरों से, जंगल में खुशहाल ॥होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥२॥जिसने कभी स्वप्न में भी, दुख देखा सुना न हाल ।निरख-निरख पग रखते मुनिवर, धन्य-धन्य सुकुमाल ॥होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥३॥अति-कोमल सुकुमाल पगों से, चलते ईर्या चाल ।कंकड़ पत्थर चुभे पैर में, धरती हुई है लाल ॥होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥४॥खून चाटती चली स्यालिनी, साथ लिए युग बाल ।तीन दिवस तक भक्षण करके, यति को किया हलाल ॥होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥५॥धन्य-धन्य सुकुमाल महामुनि, धन्य-धन्य तत्काल ।धन्य-धन्य मुनिधर्म धन्य, जिन-धर्म महा खुशहाल ॥होऽऽ मुनि दीक्षा लेके, जंगल में पहुंचे सुकुमाल ॥६॥