आया पुण्य योग से अवसर, आये गुरुवर तेरे द्वार अक्षय पुण्य कमाले देकर, मुनिवर को आहार ॥गिरिवर माने हार, देख कर गुरुवर की ऊँचाई ज्ञान के सागर के आगे, क्या सागर की गहराई ॥मन में जिनरूप संजोये-२, करे वन वन मुनि विहार अक्षय पुण्य कमाले देकर, मुनिवर को आहार ॥१॥नवधा भक्ति लिए ह्रदय में, तुम आहार कराना श्रावक धर्म को ध्यान में रखना, कहीं भूल न जाना ॥मुनिवर के रूप में जिनवर-२, करते हैं भोग स्वीकार अक्षय पुण्य कमाले देकर, मुनिवर को आहार ॥२॥कर पड़गाहन, उच्चासन धर, करो पाद प्रक्षालन पूजा और प्रणाम करो, कर शुद्ध वचन काया मन ॥रख ध्यान कि जल और भोजन-२, ये शुद्ध हो सभी प्रकार अक्षय पुण्य कमाले देकर, मुनिवर को आहार ॥३॥पुण्यमयी वे जीव है जो, मुनि को आहार कराते अरे मुनिवर से वर पाकर, श्रावक भवसागर तर जाते ॥कहे गुणी, मुनि की सेवा-२, खोले मुक्ति का द्वार अक्षय पुण्य कमाले देकर, मुनिवर को आहार ॥४॥