वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी
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राग : मलार
वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी
साधु दिगम्बर, नग्न निरम्बर, संवर भूषण धारी ॥टेक॥
कंचन-काँच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी ।
महल मसान, मरण अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी ॥
वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी ॥१॥
सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी ।
शोधत जीव सुवर्ण सदा जे, काय-कारिमा टारी ॥
वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी ॥२॥
जोरि युगल कर 'भूधर' विनवे, तिन पद ढोक हमारी ।
भाग उदय दर्शन जब पाऊँ, ता दिन की बलिहारी ॥
वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी ॥३॥