वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारीसाधु दिगम्बर, नग्न निरम्बर, संवर भूषण धारी ॥टेक॥कंचन-काँच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी ।महल मसान, मरण अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी ॥वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी ॥१॥सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी ।शोधत जीव सुवर्ण सदा जे, काय-कारिमा टारी ॥वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी ॥२॥जोरि युगल कर 'भूधर' विनवे, तिन पद ढोक हमारी ।भाग उदय दर्शन जब पाऊँ, ता दिन की बलिहारी ॥वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी ॥३॥