संत साधु बन के विचरूँ, वह घड़ी कब आयेगी चल पडूँ मैं मोक्ष पथ में, वह घड़ी कब आयेगी ॥टेक॥हाथ में पीछी कमण्डलु, ध्यान आतम राम का छोड़कर घरबार दीक्षा की घड़ी कब आयेगी ॥१॥आयेगा वैराग्य मुझको, इस दु:खी संसार से त्याग दूँगा मोह ममता, वह घड़ी कब आयेगी ॥२॥पाँच समिति तीन गुप्ति, बाईस परिषह भी सहूँ भावना बारह जु भाऊँ, वह घड़ी कब आयेगी ॥३॥बाह्य उपाधि त्याग कर, निज तत्त्व का चिंतन करूँ निर्विकल्प होवे समाधि, वह घड़ी कब आयेगी ॥४॥भव-भ्रमण का नाश होवे, इस दु:खी संसार से विचरूँ मैं निज आतमा में, वह घड़ी कब आयेगी ॥५॥