जिनको जिनधर्म सुहाया जिनराज हो गए वो तीन लोग के देखो सिरताज हो गए जिनको...निज साधन से निज साधक को, जिनने साध्य बनाया। जंगल में मंगल स्वरूप निज आत्म तत्व को ध्याया।। वो धरके दिगंबर चोला, मुनिराज हो गए ।।1।।समयसार दर्पण में जिनको जाननहार जनाया। फिर प्रमत्त अप्रमत्त दशा से खुदको भिन्न लखाया।। जो पड़े अधूरे मानों, सब काज हो गए ।।2।।अनेकांत की छाया में मुझे अनेकांत दिखलाया। रहकर स्वयं अकर्ता मुझको अकर्तृत्व समझाया।। वो बिन बोले दिव्यध्वनि की आवाज हो गए ।।3।।अहो प्रयोजन भूत तत्व जबसे दृष्टि में आया। चक्रवर्ती और इंद्र संपदा को असार है पाया।। वो खेल खेल में तारण तरण जिहाज हो गए ।।4।।क्रोध भाव से भिन्न निहारा क्षमा भाव प्रकटाया। द्रव्य दृष्टि से देखा तो परमात्मपना ही पाया।। जिनशासन का वो राज कर महाराज हो गए ।।5।।