मैं महापुण्य उदय से जिनधर्म
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मैं महापुण्य उदय से जिनधर्म पा गया॥
चार घाति कर्म नाशे ऐसा अरहंत है,
अनंत चतुष्टय धारी श्री भगवंत है,
मैं अरहंत देव की शरण आ गया॥
अष्ट कर्म नाश किये ऐसे सिद्ध देव हैं,
अष्ट गुण प्रगट जिनके हुए स्वयमेव हैं,
मैं ऐसे सिद्ध देव की शरण आ गया॥
वस्तु का स्वरूप बतावे वीतराग वाणी है,
तीन लोक के जीव हेतु महाकल्याणी है,
मैं जिनवाणी माँ की शरण में आ गया॥
परिग्रह रहित दिगम्बर मुनिराज हैं,
ज्ञान ध्यान सिवा नहीं दूजा कोई काज है,
मैं श्री मुनिराज की शरण पा गया॥