ऊंचे ऊंचे शिखरों वाला है ये, तीरथ हमारा तीरथ हमारा ये जग से न्यारामधुबन माही बरसे रे अमरत की धारा ॥ऊंचे.॥भाव सहित वंदे जो कोई, ताहि नरक पशु गति ना होई उनके लिये खुल जाये रे, सीधा स्वर्ग का द्वारा ॥जहां तीर्थंकर ने वचन उचारे, कोटि कोटि मुनि मोक्ष पधारे पूज्य परम पद पाये रे, जन्मे ना दोबारा ॥हरे-हरे वृक्षों की झूमे डाली, समवसरण की रचना निराली पर्वतराज पे शीतल जरना, बहता सुप्यारा ॥