उचें शिखरों पे बसा है, ये जैनागम कि शानमोक्षगिरि मधुबन में मिलता, मुक्ति का वरदानचारों ओर फ़िजाओं में जहां गूंज रही जिनवाणीमोक्ष दायिनी भूमि है ये भूमि है निर्वाणीजहां कण-कण में बसते हैं, मानों जिनेन्द्र भगवान ॥१ मोक्ष॥ऊंचे-ऊंचे पर्वत पर बैठे दरबार लगाएवैरागी का दर्शन ही मन में वैराग्य जगाएजहाँ तीर्थंकरों ने पाया, है अक्षय पद निर्वाण ॥२ मोक्ष॥एक बार जो करे वंदना, खुले मोक्ष का द्वारानरक पशु तिर्यंच गति ना पाये वो दोबाराप्रत्यक्ष युगों से है जो, क्या चाहे वो प्रमाण ॥३ मोक्ष॥इस धरती का स्वर्ग कहाए अपना मधुबन प्याराना जाने कितनों को इसने भव से पार उताराचल तू भी दर्शन करले, क्या सोच रहा नादान ॥४ मोक्ष॥