जहाँ नेमी के चरण पड़े, गिरनार वो धरती हैवो प्रेम मूर्ती राजूल, उस पथ पर चलती है उस कोमल काया पर, हल्दी का रंग चदामेहंदी भी रुचीर रची, गले मंगल सुत्र पड़ापर मांग ना भर पायी, ये बात ही खलती है ॥ जहाँ ॥सुन पशुओं का क्रुन्दन, तुमने तोड़े बंधनजागा वैराग्य तभी, पा ली प्रभु पथ पावनउस परम वैरागी से, चिर प्रीत उमड़ती है ॥ जहाँ ॥राजूल की आंखों से, झर झर झरता पानीअन्तर में घाव भरे, प्रभु दर्श की दीवानीमन मन्दिर में जिसकी, तस्वीर उभरती है ॥ जहाँ ॥नेमी जिस और गये, वही मेरा ठिकाना हैजीवन की यात्रा का, वो पथ अनजाना हैलख चरण चंद्र प्रभु के, राजूल कब रूकती है ॥ जहाँ ॥