सम्मेद शिखर पर मैं जाऊंगा डोली रखदो कहारों । मैं टोंकों की वंदन को जाऊंगा डोली रखदो कहारों ॥परस प्रभु का जो दर्शन पाऊँ, मैं भी तो पत्थर से सोना हो जाऊं,अपने पारस को मैं रिझाऊंगा, डोली....चौबीस जिनराज बैठे जहाँ पे, ऐसा सुहाना हैं मन्दिर वहाँ पे,बैठ मन्दिर मैं भजन सुनाऊंगा, डोली ...अन्दर के भावों का अर्घ बनाऊं, पूजा की थाली चरणों मे लाऊँ,जा के अष्ट द्रव्य को चढाऊंगा, डोली...ऐसा ललित कूट ह्रदय विहंगम, ललित कलाओं का कैसा ये संगम,ऐसी सुंदर छवि मन मैं लावूँगा, डोली..