विषयों की तृष्णा को छोड, संयम की साधना में … चल पडे नेमि कुमार । परिग्रह की चिंता को तोडकर निज के चिंतन में …. रम रहे नेमि कुमार, वेष दिगम्बर धार ॥
यह जीव अनादि से, है मोह से हारा । चहुंगति में भटक रहा, दुख सहता बेचारा । कोई नहीं है शरण अतः, आतम ही शरणा है, जाना जगत असार… वेष दिगम्बर धार ॥१॥
प्रभु चल पडे वन को, ध्याये निज चेतन को । सब राग तंतु तोडे, काटे भव बंधन को । फिर मोह शत्रु नाशे और क्षायिक चारित्र धारे, जिस में है आनंद अपार… वेष दिगम्बर धार ॥२॥
कर चार घातिया क्षय, प्रगटे चतुष्ट अक्षय । सारी सृष्टि झलके, परिणति निज में तन्मय । शाश्वत शिवपद पायें और फिर मुक्ति वधु ब्याहें, हो भव सागर पार… वेष दिगम्बर धार ॥ विषयों की तृष्णा को छोड, संयम की साधना में … चल पडे नेमि कुमार ॥३॥